शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

 

बढ़ते बलात्कार – कारण एवं जिम्मेदारी

आज सभी जगह बलात्कार जैसी नीच और अचम्य घटनाये बढती ही जा रही है यह हमारे समाज देश के लिये बहुत शर्म की बात है. क्या सिर्फ बिगड़े लड़के ही जिम्मदार है, सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार ही इसके फेलने के लिए जिम्मेदार है, क्या परिवार समाज की कोई जिम्मेदारी नहीं है।

आज बलात्कार, सामूहिक बलात्कार बेतहषा बढ़ते जा रहें है। क्या सिर्फ विकृत मानसिकता वाले, वहषी दरिन्दें, हीइनके लिए पूर्ण जिम्मेदार हैं? क्या लड़की के माता पिता का इसमें कोई दोष नहीं है। अगर कहीं मानवता कोकलंकित करती हुई बलात्कार या सामूहिक बलात्कार की घटना घटित होती है तो क्या समाज इसके लिएजिम्मेदार नहीं होता है।

यह ऐक विषय है जिसको बहुत ही गंभीरता से लेने की जरुरत है और कठोर से कठोर नियम बनाने की जरूरत हैताकि कोई भी भविष्य में बलात्कार जैसा घृणित पाप करने से पहले 1000 बार सोचे।

बलात्कारी या बलात्कारियों के संदर्भ में यहा कहा जाता है कि वे विकृत मानसिकता के व्यक्ति होते है। यहां हमें इसमिथक को तोड़ना होगा। आज की तारीख में बहुत से बलात्कार कें मामलों में उच्च षिक्षित, सामान्य मस्तिष्क केव्यक्ति ज्यादा लिप्त मिलेंगे। कारण कि जो सेक्स हमारे देष में एक छुपा हुआ विषय था वह सिर्फ सामान्य बल्किबहुत खुला हुआ और आसानी से मिलने वाला विषय हो गया है।

संयुक्त परिवारों के विघटन से परिवारों मे नैतिक षिक्षा का लगभग अभाव हो गया है क्योंकि ये शिक्षा सामान्यत बड़े बुजुर्गों से बच्चों को मिलती थी। छोटे परिवारों की व्यस्त जिन्दगी में लोगो के पास समय की कमी हो गयी हैऔर संवादहीनता एवं व्यस्तता ने युवाओं को संवेदनहीन बना दिय है। युवा जवान बच्चें अपने परिवार कीअपेक्षा अपने मित्रों के साथ मौज मस्ती में ज्यादा व्यस्त रहते हैं। सर्व विदित है कि दिषाहीन युवा शक्ति अक्सर गलत रास्ते को अपनाती है। युवा अक्सर दंभ में और अपने ग्रुप में अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए कुछ भीकरने को तैयार रहते है और लड़किया इन्हें आसान शिकार / उपाय लगती हैं।

पाष्चात्य संस्कृति के अनधाआनुकरण, महिलाओं का फैशन, ग्लैमर, विज्ञापनो में खुलकर प्रयोग हो रहा है जहां इनके शारिरिक सौन्दर्य को फूहड़ता से पेश किया है। शराब, धाम्रपान जो आज पानी की तरह से मिल रहे है। आज हाई स्कूल, उच्चतर विद्यालयों, कालेजो में शारिरिक मेहनत, अनुशासन, समर्पण, सहनषीलता, इमानदारी आदि नैतिक विषयों का अभाव है जो युवाओं को गलत काम में जाने से राकने मे सहायक होते है।

अब बात करते है लड़कियों की। अगर लड़कियां जागरुक एवं वास्तविकता को जान लें तो आधो से ज्यादाबलात्कार होंगे ही नहीं। पिछले कुछ सालों मे हमने देखा है कि लड़की का बलात्कार उसके बाय फेंड या दोस्तों नेकिया है।

शोधां एंव निकर्षों नें यह कई बार साबित किया है कि प्यार एक हारमोन के बनने से पैदा हो है जब दो विपरीत लिगवाले मिलते है। नव युवाओं में विपरीत लिंग के प्रति जबदस्त आकर्षण होता है जिसे वे प्यार समझने लगते हैं।प्यार तो निष्छल होता है जैसे मां और बेटे-बेटी, पिता का बच्चों से, मा-बाप में, भाई-बहन, बजुगों का बच्चों से।युवा वर्ग ने दो विपरीप लिंगों के आकर्षण को प्यार का नाम देकर प्यार जैसे पवित्र रिश्ते को ओछा और इसके दायरे को संकीर्ण कर दिया है।

टेलीवीजन, फिल्में, परिवारिक टीवी
धारावहिक, स्कूल कालेज के धारावहिक जो सिर्फ और सिर्फ कालेज स्ऊडेन्डस के प्यार को ही चित्रित करते है, ने हमारे बच्चों को बहुत कम उम्र में वयस्क बना दिया है और वे स्कूलकी या कहें कच्ची उम्र में ही सेक्स ज्ञान की तरफ आकर्षित हो जाते हैं। यहां यह बात समझने योग्य है कि युवा होतेहर लड़का लड़की दूसरे लड़की लड़के के प्रति आकर्षित होते हैं जिसे वे पक्का प्यार समझ लेते है। किताबोंकहानियों, फिल्मों के द्वारा भ्रांति फेलती है कि पहला प्यार पक्का प्यार होता है जो उम्र भर याद रहता है। लड़कियाभावना में बह जाती है और लड़के अपने दोस्तों में अपना दबदवा जमाने, अपने को श्रेष्ठतर साबित करने के लिएलड़कियों को मोहजाल में फंसा लेते हैं और लड़कियां इन्हें अपना भावी पति मान लेती है जिन्हें पता नहीं होता हैकि लड़का अपना खुद का बोझ संभालने लायक नहीं हुआ है वह उसे कैसे संभालेगा।

लड़की सोचती है कि उसक दोस्त (बाय फेंड या प्रमी) शहरुख, आमिर खान, सलमान, अक्षय कुमान या और कोईफिल्मी हीरो के तरह घोड़े पे सवार होकर आयेगा और उसे किसी प्यार के महल में ले जायेगा जहां चारों तरफ हरेभरे बगीचे और सरोवर होंगे किन्तु जब स्वप्न टूटता है तो पता चलाता है उसका दोस्त या प्रेमी ने उससे प्यारकेवल वासना के लिये किया है ओर जो अपने दोस्तों में अपनी शान बढ़ाने के लिए उसे उनके सामने परोसने वालाहै। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं बल्कि 90 प्रतिषत से अधिक युवा प्रेम का यथार्थ है।

परिवार की बात करते है। माताओं या बुजुग या हमउम्र महिलाओं को चाहिए को वे अपनी युवा होती लड़कियों कोइस सच्चाई को धीरे
धीरे समझाने का प्रयास करें और उनकी बुजुर्ग होकर उनकी मित्र सहेली बनकर उनकेमन को पढ़ने का प्रयास करें। उनका ख्याल करें, हो सके तो कभी कभी उनके पीछे पीछे स्कूल कालेज जावे औरदेखे कि उन्हें रास्तें कोई छेड़छाड तो नहीं कर रहा है, अगर है तो तुरन्त पुलिस थाने, महिला थाने में सूचित करेएवं लड़की को सतर्क करें। लड़को के मा बाप को सुचित करने में बिलकुल डरें और हो सके तो अपने आस पड़ोसमें बताऐ ताकि उनकी नजरो में कभी कुछ आऐ तो वे आपको खबरदार कर सकें।

शर्म, बदनामी के डर से हम हिन्दुस्तानी अन्याय को सहने के आदि हो जाते है। हिचक, जिम्मेदारी को नजरअंदाजएवं आपका आलस आपकी लड़की को खतरे में डाल सकता है। साहसी बने और हर संभव प्रयास करें।

समाज की बात करते है। हम हमारे सामाजिक दायित्व से बचते है। हमें पता चलता है कि पड़ोस का फलां बालकके लक्षण ठीक नहीं है तो क्यों नही हम उसके एवं आसपास के लोगों में इस बात की चर्चा नहीं करते है। हमाराखुद का लड़का अगर गलत संगत में पड़ गया है तो इसे भी गंभीरता से लेने के जरुरत है कहीं हमारे घर में ही कोईबलात्कारी तो नहीं बनने जा रहा है। अगर हम जागरुक एंव जिम्मेदार नागरिग हैं तो हमाने घर, आस पड़ोसं मंइस प्रकार की कोई शर्मषार घटना होने की संभावना के बराबर है।

आइऐ हम एक जिम्मेदार नागरिग बने और हमारी जिम्मेदारियों को समझे एवं उसे पूरा करें। हमारे बालकबलिकाओं को नैतिक मूल्यों का महत्व समझाऐ एवं उन्हें परिवार, समाज के प्रति उनकी जिम्मदारी समझाऐं एवंइनके प्रति उनके उत्तरदायित्व एवं कतव्यों को बोधा कराऐं। यकीन मानिए समाज को बदलते देर नहीं लगेगी। हमबदलेंगे तो समाज बदलेगा, देष बदलेगा और अच्छे समाज देष का विकाष होगा जहां भूख, भय, गरीबी, बुराईयों केलिए कोई जगह नहीं होगी।

सुनील पटेल

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